संसद और राज्य विधानमंडलों के सदस्यों की भूमिका गत वर्षों में कम हो गई है और परिणामस्वरूप नीतिगत मुद्दों पर स्वस्थ रचनात्मक बहसें आमतौर पर नहीं देखी जाती हैं। इसके लिए दलबदल विरोधी कानून को कितना जिम्मेदार ठहराया जा सकता है, जिसे एक अलग इरादे से लागू किया गया था?
The role of individual Members of Parliament and State Legislatures has diminished over the years and as a result healthy constructive debates on policy issues are not usually witnessed. How far can this be attributed to the anti-defection law which was legislated but with a different intention?